Thursday 21 April 2016

एक कहानी ज़िन्दगी की

ज़िन्दगी ना  रुकी है कभी, ना तुम्हारे लिए ना मेरे लिए ,
दिन ब दिन  बीते  गए  , साल  ब  साल निकलते  गए , 
तुम मुझे भुलाते रहे , मैँ  तुम्हे  भूल ना सका ,
तुम चल दिए अपनी ज़िन्दगी में अपने मुखाम पाने के लिए । 


तुम्हारी ज़िन्दगी बदली ,
तुम्हारे दोस्त बदले ,
बदला यह सारा जहाँ ,


पर आज भी मेरे  दिल में वो यादें ताजा है ,
तेरी  उन  बातो को आज भी  मैँ भुला ना सका , 
मैँ  चाह के भी उन्हें मिटा ना सका   ,
मैँ  चाह के भी तुम्हे  भुला ना सकु    
होके जुदा तुमसे जुदा ना हो सकु ।


वो यादें हि है तुम्हारी जो ,
मुझे खुशियों में उदासी सी दे  जाती  है ,
वो यादें हि है तुम्हारी जो ,
मुझे दर्द में भी , होंठो   पे मुस्कान सी दे  जाती  है । 


जब सोचता हुँ , उन्ह लम्हों  को ,
तो ना जाने क्यों , एक हसी सी छूट जाती है चेहरे पे ,
मानो वो हसी कह  रही हो ,
मैँ  बना तुम्हारे लिए , तुम बनी मेरे लिए ,
पर  ये ज़िन्दगी ना रुकी कभी ना तुम्हारे लिए , ना मेरे लिए । । 
 

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