Sunday 2 July 2017

अल्फाज़ छिपे कुछ किताबों में

अल्फाज़ से मैं ने खेलना छोड़ दिया, 
किताबों में मैं ने लिखना छोड़ दिया, 
प्यार लिखता था मैं किताब में, तुम्हारे लिए, 
तुम्हारे जाने से मै ने लिखना ही छोड़ दिया ।। 

कलम भी चलती नहीं, 
याद अब तुम्हारी सताती नहीं, 
लफ्ज़ बयान करता था मै,  
जो कभी होठो पे आए नहीं ।। 

अब जब मै लिखने बैठता हू, 
सोचता हू क्या लिखूँ, 
सवारता था तुम्हें शब्दों में, 
किसे सवारू जब साथ तुम नहीं ।। 

दर्द जो था वो बयान कर दिया, 
लिख कर ही तुमसे मै लड़ लिया, 
अब वजह भी नहीं है लड़ने की, 
आखिर तुमने भी तो हमारा साथ छोड़  दिया ।। 

तुम गए मेरी ज़िन्दगी से इस कदर, 
लिखना तो क्या हंसना  तक छोड़ दिया, 
हसी जो थी तुमसे मेरी, 
तुमने तो मेरी वो हसी ही छिन्न ली ।। 

किया हमने भी प्यार बेशुमार, 
शायद कमी कही हम में ही रह गयी होगी, 
नहीं तो छोड़ते ना तुम हमे यूँही, 
कही ना कही इस प्यार में कमी रह गयी होगी....!!

 

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