Wednesday 26 April 2017

मैं गुनाह ढूँढ़ता हूँ

नफरतों कि  इस  दुनिया  में,
चाह ढूँढ़ता हूँ ,
मैं आज भी मोहब्बत बेपनाह ढूँढ़ता हूँ॥


भटका मुसाफिर हूँ ,
एक यह मेरी  कहानी है ,
पहुंचा दे मंज़िल तक वो राह ढूँढ़ता हूँ ॥


निकाला गया हूँ इस तरह किसी के दिल से ,
हर किसी के दिल में, अब पनाह ढूँढ़ता हूँ ॥


लोंगो कि नज़र में नफ़रत के सिवा कुछ नहीं ,
जिसमें सिर्फ़ प्यार हो,
वह निग़ाह ढूंढता हूँ ॥


जानता हूँ कि  ये मुम्किन नहीँ ,
अपनी हर गज़ल में वाह-वाह ढूँढ़ता हूँ॥


अपनी कहानी का अंदाज़ की अलग है औरों से ,
सज़ा तो मिल चुकी, बस गुनाह ढूँढ़ता हूँ॥

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