Wednesday 5 October 2016

याद है वो पल ?

क्या तुम्हें वो पल याद है ?
जब तुम सिर्फ़ इंतेज़ार कर रहे थे ।
इंतेजार घर जाने का , इंतेजार अपने कमरे में जाने का;
और धरवाजा बंद कर, बिस्तर में सोने का ।
ताकि अपने  आप को सबसे अलग कर सको , पुरे दिन की बातो से ,
वो राहत और हताशा को महसुस कर सको  ॥ 

कुछ गलत नहीं है , पर कुछ सही भी नही है ,
और तुम थके हुए,
थके सारी बातों  से पर फ़िर भी थके किसी वज़ह से नही ;
वो तलाश  किसी अपने की  ;
कोई अपना जो तुम्हें कह सके सब ठीक है,
पर न जाने क्यों कोई नही होगा, तुम्हें समझ ने के लिए ,
और तुम जानते हो, मजबूत होना तुम्हारी जरुरत है ,
किसी के लिए नहीं , पर तुम्हारे खुद के लिए ,
 क्यों  कि तुम्हारे बिखरे सपने, को कोई जोड़ नहीं सकता ॥


थक गए तुम, इंतज़ार करते - करते,
थक गए तुम खुद को और सबको संभाल ते संभाल थे ,
थक गए तुम मजबूत  बनते-बनते,
सिर्फ़  एक बार , एक बार राश्ता आसान हो,
 सिर्फ़  एक बार, तुम अपने  आप  को  सरल महसुस कर सको ,
सिर्फ एक बार कोई आए और पूछे मदद के  लिए ,
सिर्फ एक बार कोई तुम्हें खुद से बचाए॥

तुम्हे पता है , कोई  नहीं आएगा  तुम्हारे  लिए ,
पर फ़िर भी तुम्हे इंतज़ार है उनका ,
यही कारण है कि तुम अभी भी मजबूत हो के लड़ रहे  हो ,
आँखे नम लिए ,
तुम  लड़ रहे इस जहान से ॥



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